आमेर का किला, जयपुर, राजस्थान
आमेर का किला
लगभग सभी पर्यटक जो जयपुर घूमने आते हैं वह आमेर का किला जरूर देखने जाते हैं क्योंकि आमेर का किला जयपुर शहर का एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है।आमेर के किले को सन 2013 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
आमेर शहर के पास एक चील का टीला नामक पहाड़ी पर भगवान अंबिकेश्वर का मंदिर है।अंबिकेश्वर भगवान शिव का ही एक नाम है। भगवान अंबिकेश्वर के इस प्राचीन मंदिर के कारण इस शहर को अंबेर और किले को अंबेर का किला के नाम से भी जाना जाता है।
आमेर के किले में कछवाहा वंश के राजाओं के परिवार भी निवास किया करते थे इसलिए इसे आमेर पैलेस के नाम से भी जाना जाता है। किले में मुख्य द्वार के पास प्रवेश करते ही कछवाहा वंश के राजाओं की आराध्य देवी शीला को समर्पित एक मंदिर बना हुआ है। जोकि चैतन्य पंथ से संबंधित हैं। शीला माता की बेहद सुन्दर मूर्ति मंदिर में स्थापित है शाम को जब आरती और पूजन होता है तो पूरा स्थान एक अलौकिक आनन्द से भर जाता है।
आमेर का किला राजपूतों के शाही शानो शौकत को दिखाता है। यह अपनी वास्तुकला और इतिहास की वजह से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि की वजह से देश-विदेश से लगभग पाँच से सात हजार लोग रोज इसे देखने आते हैं। आमेर के किले में कई सारी हिंदी फिल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। इस किले का निर्माण कई वर्षों में हुआ है इसे पहले राजा मानसिंह ने फिर राजा जयसिंह ने बनवाया था। यह किला हिंदू राजपूताना और मुगल शैली में बना हुआ है। इस किले का निर्माण संगमरमर और लाल तथा पीले बलुआ पत्थरों से करवाया गया है।
आमेर का किला जयपुर से लगभग 11 किलोमीटर दूर आमेर क्षेत्र के एक पहाड़ी पर स्थित है। यह एक पहाड़ी किला या दुर्ग है जो कि चार वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। जयगढ़ का किला और आमेर का किला अरावली पर्वतमाला पर आमने सामने स्थित हैं। व एक सुरंग से आपस में जुड़े हुए हैं।
आमेर किले के तल में स्थित मावठा झील एक प्रसिद्ध झील है। यह एक कृत्रिम झील है जिसे महल के सुंदरता और सुरक्षा के लिए बनवाया गया था। कहा जाता है कि इस झील से ही किले के लिए पानी पहुंचाया जाता था। मावठा झील के बीच में एक छोटा सा बगीचा है जिसे केसर क्यारी कहा जाता है। बारिश के मौसम में मावठा झील पूरी तरह भर जाती है तब इसकी सुंदरता देखने लायक होती है। इस झील के किनारे से ही आमेर के किले में जाने का पैदल मार्ग है।
आमेर शहर को मूल रूप से मीणाओं द्वारा बसाया गया था। आमेर के इस किले पर भी मीणाओं का ही अधिकार था। कालांतर में कछवाहा राजपूत राजा मानसिंह प्रथम ने इस पर आक्रमण करके इसे अपने अधिकार में ले लिया और इस किले का भव्य रूप से निर्माण करवाया।
यहां के राजपूत स्वयं को अयोध्या के राजा भगवान रामचंद्र के पुत्र कुश का वंशज मानते हैं इसलिए अपने को कुशवाहा कहते हैं जो कि बाद में बिगड़ कर कछवाहा बन गया।
आमेर किले तक सुगम रास्ते द्वारा पहुंचा जा सकता है। पैदल यात्री सीढ़ियों द्वारा चल कर आते हैं व हाथी की सवारी करके तथा वाहन से आने के लिये अन्य मार्ग भी है। आमेर फोर्ट के प्राँगण में शाही परिवार के लोग सिंह पोल से व आम जनता चंद्र पोल से आया करती थी।
सूरज पोल और जलेब चौक तक अक्सर पर्यटक हाथी पर सवार होकर जाते हैं। जलेब चौक में सैनिकों की परेड हुआ करती थी। चौक के सिरे से सीढ़ियों की पंक्तियाँ उठती हैं।
आमेर का किला मुख्य रूप से चार हिस्सों में विभाजित है। (1)..जलेब चौक ..सूरज पोल से निकल कर हम एक बड़े से प्राँगण में आते हैं जिसे जलेब चौक के नाम से जाना जाता है इस स्थान की लम्बाई लगभग 100 मीटर और चौड़ाई 65 मीटर है। यहाँ पर सैनिक परेड किया करते थे। जब राजा कोई युद्ध जीतकर आता था तो सैनिकों द्वारा यहाँ जुलूस निकाला जाता था जिसे महल की रानियाँ झरोखों से देखा करती थीं। जलेब चौक अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है सैनिकों के इकट्ठे होने की जगह।
(2).. दीवाने आम जहां पर राजा दरबार में आम लोगों की शिकायतें सुना करते थे। दीवाने आम को हाथी के दांत से सजाया गया है।
(3).. दीवानेखास जहां राजा खास लोगों से सलाह मशवरा किया करते थे जैसे अपने सेनापति, मंत्री, गुप्तचर। यहाँ शाही अतिथियों को भी ठहराया जाता था। इसका एक नाम जय मंदिर भी है।
दीवानेखास को शीश महल के नाम से जाना जाता है। इस महल में शीशे का अत्यधिक प्रयोग किया गया है। शीश महल का निर्माण इस तरह से किया गया है कि यहां पर थोड़ी सी रोशनी पढ़ते ही यह पूरा महल चमक उठता है।
(4)..आमेर पैलेस के चौथे हिस्से को सुख निवास के नाम से जाना जाता है। महल में मुगल व राजपूत वास्तुकला का मिश्रित इस्तेमाल किया गया है। बारीक ढंग से नक्काशी की हुई जाली की चिलमन, बारीक शीशों और गचकारी का कार्य और चित्रित व नक्काशीदार निचली दीवारें। सुख निवास का इस्तेमाल राजा अपनी रानियों के साथ आराम करने के लिए किया करते थे। सुख निवास के निर्माण में भी चंदन और हाथीदांत का इस्तेमाल किया गया है। सुख निवास में बनावटी रूप से जल धाराएं निर्मित हैं। जो कि गर्मियों में इस स्थान को शीतलता प्रदान करती हैं। तथा मनोहारी और विहंगम दृश्य पैदा करती हैं।
पुराना शहर - कभी राजाओं, हस्तशिल्पों व आम जनता का आवास आमेर का पुराना क़स्बा अब खंडहर बन गया है। आकर्षक ढंग से नक्काशीदार व सुनियोजित जगत शिरोमणि मंदिर, मीराबाई से जुड़ा एक कृष्ण मंदिर, नरसिंहजी का पुराना मंदिर व अच्छे ढंग से बना सीढ़ियों वाला कुआँ, पन्ना मियां का कुण्ड समृद्ध अतीत के अवशेष हैं।
आमेर फोर्ट देखने का समय
जयपुर या आमेर के किले को आप देखना चाहते हैं तो कभी भी आ सकते हैं ये पूरे वर्ष खुला रहता है पर यहाँ आने का बेहतरीन समय होता है अक्टूबर से लेकर मार्च तक का क्योंकि राजस्थान में काफी गर्मी पड़ती है इसलिए पर्यटक को के लिए यह समय ही सबसे बेस्ट माना जाता है।
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