कोविड़-19 वर्सेस कुम्भ-21 (COVID-19 V/S KUMBH-21)
कोविड़-19 वर्सेस कुम्भ-21 ( COVID-19 V/S KUMBH-21 )
भारतीय सनातन संस्कृति में तीर्थ दर्शन का बहुत महत्व है। ऐसा माना जाता है कि तीर्थ स्थान पर किये गये धार्मिक कार्य जैसे पूजा,जप, तप, ध्यान, दान और पवित्र नदियों में स्नान का महत्व कई गुना अधिक होता है। वर्ष भर भारत की पवित्र नदियों के तट पर धार्मिक अनुष्ठान और स्नान के लिये पर्व लगता रहता है जिनमें से सबसे विशेष महत्व कुम्भ के पर्व पर किये गये स्नान का है।
वैज्ञानिक कारण :-
कुम्भ मेले के आयोजन के पीछे वैज्ञानिक कारण भी हैं। कहते हैं कि जब कुम्भ मेले की शुरुवात होती है तो उस समय सूर्य पर हो रहे विस्फोट बढ़ जाते हैं जिनका धरती पर भयानक असर होता है। सम्भवतः हमारे प्राचीन ऋषि इस बात को अच्छी तरह से जानते थे। इसलिये इस समय ये धार्मिक आयोजन करके उन्होंने दुनिया को ये सन्देश दिया।
कुम्भ स्नान का महत्व
हिन्दू धर्म में कुम्भ स्नान का बहुत महत्व बतलाया गया है। कुंभ स्नान से अमृत देने वाले पुण्य की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति कुंभ में किसी भी दिन स्नान करता है उसके पितरों को पुण्य की प्राप्ति होती है व उन्हें मोक्ष लाभ मिलता है। पितरों का आशीर्वाद मिलने से मनुष्य को सुख समृद्धि शांति और संतुष्टि की प्राप्त होती है। कुंभ मेले के दौरान किसी भी दिन स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है परंतु शाही स्नान के दिन स्नान करने से अमृत की प्राप्ति होती है। शाही स्नान का यह नियम है कि पहले साधु संत स्नान करते हैं उसके बाद ही आम जनता स्नान करती है ताकि साधु-संतों के स्नान से जो पुण्य मिला है वह कुम्भ स्नान से और भी बढ़ जाए।
कुम्भ क्या है
कुंभ कलश को कहते हैं जिसका एक अर्थ घड़ा भी होता है। कुंभ मेले का संबंध समुद्र मंथन के द्वारा प्रकट हुए अमृत कलश से है। देवता व असुर इस अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए आपस में छीना झपटी कर रहे थे तो इस कलश से पृथ्वी पर चार स्थानों पर अमृत की कुछ बूंदें गिर गई यह चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक हैं। इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ पर्व का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष बाद होता है।
पौराणिक ग्रंथों जैसे नारदीय पुराण, शिव पुराण, वाराह पुराण और ब्रह्मा पुराण आदि में भी कुंभ एवं अर्ध कुंभ के आयोजन को लेकर ज्योतिषीय विश्लेषण उपलब्ध हैं। कुंभ पर्व प्रत्येक 3 साल के अंतराल पर हरिद्वार से शुरू होता है। हरिद्वार के बाद कुंभ पर्व प्रयाग, नासिक और उज्जैन में तीन-तीन साल के अंतराल पर मनाया जाता है।
कुम्भ मेले का आयोजन प्राचीन काल से होता रहा है परन्तु इसका लिखित प्रमाण बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग के लेख से मिलता है जिसमे छठीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में होने वाले कुम्भ मेले का वर्णन किया गया है।
इसकी पौराणिक व धार्मिक कथा कुछ इस प्रकार है:-
एक बार महर्षि दुर्वासा ने क्रोधित होकर भगवान इंद्र को श्राप दे दिया जिसके कारण सभी देवगण कमजोर पड़ गए। देवताओं को कमजोर जानकर राक्षसों ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण कर दिया और देवताओं को परास्त कर दिया। तब सब देवता भगवान विष्णु के पास गए और अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे। भगवान विष्णु ने देवताओं को एक उपाय बताया कि अगर वह समुद्र मंथन करके उसमें रखा हुआ अमृत प्राप्त कर लें तो वह परम शक्तिशाली और अमर हो जाएंगे फिर कभी राक्षस देवताओं को पराजित नहीं कर सकेंगे। परंतु देवताओं ने कमजोर हो जाने के कारण समुद्र मंथन करने में अपनी असमर्थता जताई तो भगवान विष्णु ने उन्हें राक्षसों को अपने साथ संधि करने का के लिए प्रोत्साहित किया। देवता और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया जिससे उन्हें अनेक रत्न प्राप्त हुए जिन्हें देवताओं और राक्षसों ने आपस में बांट लिया। इसी समुद्र मंथन के द्वारा हलाहल विष भी निकला जिसे देवता और राक्षस कोई भी स्वीकार करने को तैयार ना हुए तो भगवान शिव ने उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। उस विष के कारण भगवान शिव का गला नीला पड़ गया जिसके कारण भगवान शिव नीलकंठ भी कहलाए। अंत में देवता और राक्षसों के अथक प्रयास से समुद्र से अमृत कलश निकला जिसके लिए देवता और राक्षस आपस में पुनः युद्ध करने लगे इस युद्ध को देखकर इंद्रदेव ने अपने पुत्र जयंत को इशारा किया ताकि वह अमृत कलश को लेकर भाग जाए। जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश मार्ग से भाग चले। जब राक्षसों ने ऐसा देखा तो उन्होंने जयंत का पीछा किया व अमृत कलश को जयंत से छीनने लगे और देवता लोग राक्षसों से अमृत कलश को बचाने के लिए प्रयास करने लगे। इसी प्रयास के दौरान अमृत कलश से अमृत पृथ्वी लोक पर चार स्थानों पर छलक गया इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मनाया जाता है। इस कलश की रक्षा के लिए मुख्य रूप से चंद्रमा, सूर्य, गुरु ब्रहस्पति व शनिदेव ने कपूर का प्रयास किया। अतः जब मकर अर्थात कुंभ में इन ग्रहों का प्रवेश होता है तो अलग-अलग स्थानों पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। अमृत कलश के लिए देवताओं और राक्षसों में 12 दिनों तक युद्ध चला और देवताओं का एक दिन मनुष्यों के 12 वर्ष के बराबर होता है इसलिए इन चारों स्थानों में से प्रत्येक स्थान पर 12 वर्ष पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है।
2021 की कुम्भ नगरी कौन सी है
2021 में कुम्भ पर्व हरिद्वार में मनाया जा रहा है। कुम्भ पर्व कब और कहाँ मनाया जाता है इसका निर्धारण ज्योतिषीय गणना के अनुसार होता है। जैसे :-
1. हरिद्वार - जब कुंभ राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है और मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होता है तब कुंभ का पर्व हरिद्वार में आयोजित किया जाता है। जैसा कि 2021 में किया जा रहा है।
2. प्रयागराज - मेष राशि में बृहस्पति और सूर्य व चंद्र के मकर राशि में प्रवेश करने पर अमावस्या के दिन से कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित किया जाता है। एक अन्य गणना के अनुसार मकर राशि का सूर्य एवं वृष राशि में बृहस्पति का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व प्रयाग में आयोजित होता है।
3. नासिक में कुंभ - सिंह राशि में बृहस्पति के प्रवेश होने पर कुंभ पर्व गोदावरी नदी के तट पर नासिक में आयोजित होता है। अमावस्या के दिन बृहस्पति, सूर्य और चंद्र के कर्क राशि में प्रवेश होने पर भी कुंभ पर्व गोदावरी नदी के तट पर आयोजित होता है। इसे सिंहस्थ कुंभ भी कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
4. उज्जैन - सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर कुंभ का पर्व उज्जैन में होता है। इसके अलावा यह कार्तिक की अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्र के साथ होने पर एवं बृहस्पति के तुला राशि में प्रवेश करने पर मोक्ष दायक कुंभ उज्जैन में आयोजित होता है। इस कुंभ को भी सिंहस्थ कुंभ इसीलिए कहते हैं क्योंकि इसमें सिंह राशि में बृहस्पति का प्रवेश होता है।
कोविड़-19 का कुम्भ21 के स्नान पर असर
कोविड-19 का हरिद्वार कुंभ 2021 के स्नान पर काफी व्यापक असर पड़ा है। सरकार की सख्ती के वजह से पिछले कुंभ की तरह यात्री लोग बेफिक्र और उन्मुक्त भाव से हरिद्वार नहीं आ सकते। हरिद्वार आने के लिए उन्हें सरकार के कई गाइडलाइंस का पालन करना पड़ेगा। सभी यात्रियों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा व अपनी 72 घंटे पहले की कोरोना नेगेटिव की रिपोर्ट साथ लानी आवश्यक है अन्यथा हरिद्वार में ही यात्रियों की कोरोना टेस्टिंग की जाएगी और रिपोर्ट नेगेटिव लाने के बाद ही उन्हें कुंभ में स्नान करने की आज्ञा मिलेगी या फिर दूसरा ऑप्शन यह है कि उन्होंने अपनी दोनों बार की वैक्सीनेशन करा रखी हो जिसका सर्टिफिकेट अपने साथ लाना अनिवार्य है। सरकार ने यात्रियों से अनुरोध किया है के 10 वर्ष से कम बच्चों को और गंभीर बीमारी से ग्रस्त बुजुर्गों को साथ ना लाएं। सरकार के गाइडलाइन के वजह से कुंभ में यात्रियों की संख्या में व्यापक कमी देखी गई है। जिस कारण इस बार शाही स्नान में भी पहले के जितनी भीड़ नहीं होगी व हरिद्वार में व्यापार पर भी असर पड़ेगा।
यात्री किस तैयारी के साथ पहुँचें कुम्भ नगरी
लोगों से अनुरोध है के आने से पहले अपने होटल और धर्मशाला ऑनलाइन बुक कर ले व अपना कीमती सामान लेकर कुंभ मेले में ना आए। कम से कम और जरूरत का सामान लेकर ही आएं ताकि असुविधा से बचे रहें। कुंभ मेले के लिए सरकार ने ना ही अधिक ट्रेन चलाई है और ना ही बसों को ही बढ़ाया है इसलिए यात्रीगण पहले से अपने आने जाने का ट्रेन रिजर्वेशन सुनिश्चित कर कराएं ताकि उन्हें हरिद्वार में असुविधा न हो।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें