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अयोध्या......Ayodhya

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अयोध्या......Ayodhya भगवान श्री राम अयोध्या ... भगवान श्री राम की नगरी। अयोध्या का अर्थ है जिसे युद्ध में जीता ना जा सके। पतित पावन नगरी अयोध्या, कहते हैं सरयू नदी के किनारे अयोध्या के राम की पैड़ी घाट पर सभी तीर्थ स्वयं शाम को स्नान करने आते हैं। ऋषि मुनि गाते हैं- " गंगा बड़ी गोदावरी, तीर्थराज प्रयाग। सबसे बड़ी अयोध्या, जहां राम लिए अवतार।"  रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्वयं प्रभु राम श्री मुख्य के मुख से कहलवाया है- " अवधपुरी मम पुरी सुहावन, उत्तर दिस सरजू बहे पावन।" तो आइए जानते हैं अयोध्या नगरी का इतिहास के बारे में कुछ खास बातें और यहां के मनोरम दर्शनीय स्थान  के बारे में। सरयू नदी के तट पर स्थित अयोध्या हिंदुओं का लोकप्रिय तीर्थ स्थान है। माना जाता है कि विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम का जन्म यही अयोध्या में हुआ था। सन् 1527 इस्वी में मुस्लिम बादशाह बाबर ने यहां एक मस्जिद का निर्माण करवाया था और माना जाता है कि ठीक उसी जगह पर भगवान श्रीराम का जन्म स्थान है। काफी लंबे समय से इस बारे में मतभेद चला आ रहा है लेकिन सभी

श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान

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श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान हमारे परिवार के वो व्यक्ति जो अब इस दुनिया में नहीं हैं  हमारे पूर्वज कहलाते हैं। अपने पूर्वजों को श्रद्धा और प्रेम के साथ याद करना और उनके नाम पर किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान को श्राद्ध और पिंडदान कहते हैं। सनातन धर्म में पुनर्जन्म वाद का सिद्धांत है। माना जाता है कि आत्मा अमर है अर्थात हमारे परिवार के जो लोग इस शरीर को छोड़कर चले गए हैं उनकी आत्मा किसी भी लोक में हो, पितृ पक्ष में इस धरती पर वापस आती है और वह श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त होती है। वैदिक धर्म के अनुसार श्राद्ध और तर्पण से पितरों को तृप्ति मिलती है और पिंडदान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारत में कई स्थान पर पिंडदान किया जाता है परंतु बिहार के गया धाम में बहने वाली फल्गु नदी के तट पर किए गए पिंडदान को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है। पिंड दान क्या होता है ? किसी भी वस्तु के गोलाकार रूप को पिंड कहते हैं। अब तो विज्ञान भी मानता है कि यह पूरा ब्रह्मांड एक ऊर्जा का स्वरूप है और गोला का रूप में चक्कर काट रहा है। इस प्रकार हमारा शरीर भी ऊर्जा का

गया ( बिहार ).....पूर्वजों की मुक्ति...Gaya Dham ...Purvajon ki mukti

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गया.... गया धाम तीर्थ.... पित्तरों की मुक्ति के लिए उत्तम स्थान है। पुराणों में गया तीर्थ की महिमा बताई गई है। गयाजी में पूरे वर्ष पिंडदान किया जा सकता है परंतु पित्र पक्ष में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। गया में साल में एक बार 17 दिन का मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहते हैं। पित्र पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के पास और अक्षय वट के पास पिंड दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता का पिंडदान फल्गु नदी के तट पर किया था।  हिंदुओं के लिए गया मुक्ति क्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान है।आस्था और धर्म का प्रतीक मुक्तिधाम गया छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच बसा हुआ धार्मिक नगर है जोकि  वेदानुसार सप्तपुरियों में से एक मुक्तिपद तीर्थ स्थल है फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर बसा गया श्राद्ध एवं पिंडदान के लिए विख्यात है। फल्गु नदी सतह पर सिर्फ और सिर्फ बालू का ढेर है और ज़मीन से कुछ फीट नीचे, पानी से लबालब.. छ्ठ में इस सूखे रिवर बेड में छोटे छोटे कुंड खोद कर पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है.. हर वर्ष गया में पिंडदान करने के

प्रयागराज.....इलाहाबाद दर्शनीय स्थल...prayagraaj....Allahabad ke darshniye sthal

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  प्रयागराज उत्तर प्रदेश का प्रयागराज एक मशहूर शहर है। इसका पुराना नाम इलाहाबाद भी है जो कि अभी हाल ही में बदल दिया गया। प्रयागराज एक प्राचीन और ऐतिहासिक शहर है इसे भारत ही नहीं बल्कि विश्व के प्राचीनतम शहरों में से जाना जाता है। पूरे विश्व में यह कुंभ नगरी के नाम से मशहूर है यहां 12 वर्ष में कुंभ वा 6 वर्ष में अर्ध कुंभ का मेला लगता है जो कि पूरे विश्व में मशहूर है।  मुगल सम्राट अकबर ने सन् 1583 इस्वी में यहां इलाहाबाद किला बनवाया था और इसे अल्लाह का शहर के नाम से पुकारा, जिसे बाद में इसे इलाहाबाद के नाम से जाना जाने लगा। इलाहाबाद के अमरुद पूरे भारत में प्रसिद्ध है अगर आप इलाहाबाद घूमने आए तो यहां के  अमरूद का स्वाद जरूर लें। इलाहाबाद की चाट भी बहुत मशहूर है। यहां का स्ट्रीट फूड आपके मुंह में पानी ला देगा। इलाहाबाद स्टेशन से प्रयागराज मात्र 6 किलोमीटर की दूरी पर है। पवित्र त्रिवेणी संगम अक्षयवट प्रयागराज ऐसी मान्यता है की जब तक प्रयाग में स्नान के बाद अक्षय वट के दर्शन और पूजन न किये जाएं तब तक स्नान का पुण्य नही मिलता। ऑल सेंट कैथेड्रल चर्च इलाहाबा