गया ( बिहार ).....पूर्वजों की मुक्ति...Gaya Dham ...Purvajon ki mukti
गया....
गया धाम तीर्थ.... पित्तरों की मुक्ति के लिए उत्तम स्थान है। पुराणों में गया तीर्थ की महिमा बताई गई है। गयाजी में पूरे वर्ष पिंडदान किया जा सकता है परंतु पित्र पक्ष में पिंडदान करने का विशेष महत्व है। गया में साल में एक बार 17 दिन का मेला लगता है जिसे पितृपक्ष मेला कहते हैं। पित्र पक्ष में फल्गु नदी के तट पर विष्णुपद मंदिर के पास और अक्षय वट के पास पिंड दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। भगवान श्रीराम ने भी अपने पिता का पिंडदान फल्गु नदी के तट पर किया था।
हिंदुओं के लिए गया मुक्ति क्षेत्र और मोक्ष प्राप्ति का स्थान है।आस्था और धर्म का प्रतीक मुक्तिधाम गया छोटी-छोटी पहाड़ियों के बीच बसा हुआ धार्मिक नगर है जोकि वेदानुसार सप्तपुरियों में से एक मुक्तिपद तीर्थ स्थल है फल्गु नदी के पश्चिमी किनारे पर बसा गया श्राद्ध एवं पिंडदान के लिए विख्यात है। फल्गु नदी सतह पर सिर्फ और सिर्फ बालू का ढेर है और ज़मीन से कुछ फीट नीचे, पानी से लबालब.. छ्ठ में इस सूखे रिवर बेड में छोटे छोटे कुंड खोद कर पूजा करने का विशेष महत्व माना जाता है..
हर वर्ष गया में पिंडदान करने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु आते हैं। बिहार की राजधानी पटना से लगभग 100 किलोमीटर दूरी पर बसा हुआ है गया जिला। गया जिला बस मार्ग, हवाई मार्ग, वह रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है।
गया तीर्थ की कथा...
ब्रह्मा जी के सृष्टि से एक गयासुर नामक दैत्य प्रकट हुआ। परंतु उसमें आसुरी प्रवृत्ति नहीं थी और वह प्रभु का भक्त था। गयासुर ने अपने आराध्य देव भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। गयासुर की तपस्या से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और उन्होंने गयासुर से वरदान मांगने को कहा तो गयासुर ने यह वरदान मांगा कि आप मेरे शरीर में वास करें और जो मुझे देखें वह अपने समस्त पापों से मुक्त हो जाए और मृत्यु के पश्चात स्वर्ग का अधिकारी बने। गयासुर को मिले इस वरदान के कारण जो भी व्यक्ति गयासुर के दर्शन कर लेता वह पाप से मुक्त हो जाता। इससे ब्रह्मा जी की बनाई व्यवस्था गड़बड़ाने लगी। पापी से पापी मनुष्य भी स्वर्ग में जाने लगा। यह देखकर सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की कि यदि गयासुर को रोका ना गया तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाएगा। तब ब्रह्माजी ने गयासुर को बुलाकर कहा कि तुम्हारा शरीर सबसे पवित्र स्थान है इसमें विष्णु जी का वास है और मैं सभी देवताओं को लेकर तुम्हारे इस शरीर पर यज्ञ करना चाहता हूं। इस बात को गयासुर मान गया तो ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं के साथ उसके शरीर पर बैठकर यज्ञ करना आरंभ किया परंतु उसका शरीर आंचल नहीं था जिसके कारण यज्ञ में बाधा पड़ रही थी। तब देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि आप इसका हिलना डोलना बंद कर दें जिसे स्वीकार करके भगवान विष्णु ने गयासुर के शरीर पर अपना पैर रख दिया तब जाकर गयासुर अचल हो गया और यज्ञ संपन्न हुआ। तत्पश्चात भगवान विष्णु ने गयासुर को पत्थर का बना कर वहीं स्थापित कर दिया भगवान विष्णु ने गयासुर से वर मांगने को कहा तो गया सोने यह मांगा कि आप सभी देवताओं के साथ यहीं विराजमान रहे और यह स्थल मृत्यु के बाद किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों के लिए तीर्थ बन जाए। तब से मृत आत्माओं की मुक्त के लिए यह स्थान तीर्थ बन गया और यहां पिंडदान होने लगा।राजा दशरथ का पिंड दान...
राम लक्ष्मण और सीता जी भी अपने पिता महाराज दशरथ का श्राद्ध करने के लिए गया धाम गए थे। फल्गु नदी के किनारे सीता जी को बिठाकर राम और लक्ष्मण श्राद्ध के लिए आवश्यक सामग्री लेने चले गए। सामग्री लाने में देरी होने के कारण राजा दशरथ की आत्मा ने पिंड की मांग कर दी। तब सीता जी ने बालू का पिंड बनाकर और फल्गु नदी, गाय, केतकी के फूल और वट वृक्ष को साक्षी मानकर पिंड दान कर दिया। जब श्रीराम वापस आए तो उन्हें सीता ने सारी बात बताई परंतु श्री राम ने सीता जी से प्रमाण देने को कहा। तब सीताजी ने फल्गु नदी, गाय, केतकी के फूल, वटवृक्ष और पंडे से प्रमाण देने को कहा परंतु यह सभी मुकर गए। केवल वटवृक्ष ने सीता जी के पक्ष में गवाही दी। इससे क्रोधित होकर माता सीता ने फल्गु नदी को जमीन के नीचे बहने का श्राप दिया व गाय के केवल पिछले हिस्से को ही पूजनीय माना तथा केतकी के फूल को श्राद्ध की पूजा में निषेध कर दिया वह पंडे को श्राप दिया कि तुम अपनी दक्षिणा से सदैव असंतुष्ट रहोगे। वटवृक्ष पर माँ सीता ने प्रसन्न होकर उसे दीर्घायु होने व दूसरों को घनी छाया प्रदान करने का वर दिया। इसके पश्चात मां सीता ने महाराज दशरथ के आत्मा का ध्यान किया तो दशरथ जी ने पिंडदान होने की बात स्वीकार की।
भगवान विष्णु ने जहां अपना पैर स्थापित किया था वहां आज भी विष्णुपद के नाम से मंदिर स्थापित है तथा सीता कुंड में आज भी बालों का पिंड बनाकर पिंडदान किया जाता है व वट वृक्ष के नीचे भी लोग पिंडदान करते हैं तथा अपने पितरों की श्राद्ध करते हैं। गया में किए गए श्राद्ध की महिमा सबसे अधिक मानी गई है इसके अतिरिक्त हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथ पुरी, बद्रीनाथ धाम, कुरुक्षेत्र, व चित्रकूट तथा पुष्कर में भी श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
विष्णुपद मंदिर
गया में पिंडदान के लिए 360 वेदियां थी लेकिन अब 48 ही बची हैं। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर तर्पण और पिंडदान किया जाता है। पित्र पक्ष के सबसे पहले दिन फल्गु नदी में अपने पितरों को तर्पण देना चाहिए। मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं जल के रूप में उपस्थित हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार कहते हैं कि किसी एक भी व्यक्ति के द्वारा यदि गया में श्राद्ध किया जाए तो उसके पिछले 21 पीढ़ियों के पितृ मुक्त हो जाते हैं।
कहते हैं कि फल्गु नदी में सर्वनाश और गदाधर देव का दर्शन तथा गयासुर की परिक्रमा ब्रहम हत्या जैसे पाप से भी मुक्त दिलाती है। फल्गु नदी को स्वयं विष्णु का अवतार कहा जाता है।
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