माँ गंगा का धरती पर अवतरण...Ma Ganga Ka Dharti Par Avtran





जय माँ गंगे....

प्रतापी इक्ष्वाकु वंश में एक धर्मात्मा राजा सगर हुए हैं। उनकी प्रशंसा के कारण देवताओं का राजा इंद्र उनसे बहुत ईर्ष्या करता था। 

ईर्ष्या किससे किसको हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। और ईर्ष्या बहुत ही खतरनाक होती है, यह नहीं कहा जा सकता  कि कोई छोटा आदमी बड़े इंसान से ईर्ष्या करता है, बल्कि कोई बड़ा इंसान भी किसी छोटे व्यक्ति की किसी विशेष गुण के कारण उससे ऐसा कर सकता है। महाराज सगर साधारण मनुष्यों के राजा थे और अपने धार्मिक और अच्छे गुणों के कारण प्रशंसा पाते थे। जबकि इंद्र देवताओं के राजा हैं फिर भी वह राजा सागर से ईर्ष्या करते हैं। तो यह जानना बहुत मुश्किल है कि कोई किसी से क्यों ऐसा कर सकता है।

इसलिए जब महाराज सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने का निश्चय किया तो इंद्र ने उनका यज्ञ निष्फल करने के लिए यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया, और पाताल लोक में ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में छुपा दिया। 

अगर किसी व्यक्ति को किसी से ईर्ष्या है तो वह उसका अहित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। जैसे देवताओं के राजा इंद्र राजा होते हुए भी महाराज सागर का यज्ञ का घोड़ा चोरी करते हैं और जाकर कपिल मुनि के आश्रम में छुपा देते हैं। क्योंकि वह साधारण चोर नहीं हैं, और उन्हें उस घोड़े की जरूरत भी नहीं थी वह बस राजा का यज्ञ ईष्या वश असफल करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने घोड़े को कपिल मुनि के आश्रम में छोड़ दिया। जरूरी नहीं है  कि जो व्यक्ति हमारा अहित करता है हमारी उससे दुश्मनी हो या हमने उसका कभी कोई नुकसान किया हो। वह ऐसा हम से ईर्ष्या वश भी कर सकता है।  जीवन में हमें उनसे ही सावधान रहने की जरूरत नहीं होती जो हमारे दोस्त या दुश्मन हैं, बल्कि हमें उन लोगों को पहचानने की जरूरत होती है जो हम से ईर्ष्या करते हैं।

जब राजा सगर को यह समाचार मिला तो उन्होंने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़े की तलाश में चारों दिशाओं में भेज दिया। घोड़े को खोजते खोजते जब उन लोगों ने यज्ञ का घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में देखा तो कपिल मुनि को चोर समझकर उनका बड़ा निरादर किया।

राजा के सैनिकों ने कपिल मुनि के आश्रम में घोड़ा देखा तो बिना सोच विचार किए बिना मुनि से बात किए, कपिल मुनि को उन्होंने चोर समझ लिया। और उन्हें काफी बुरा भला कहा, और इसका उन्हें परिणाम भुगतना पड़ा।

बचपन में गिरिधर कविराय का एक दोहा पढा था। " बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए। काम बिगाड़े आपनो, जग में होत हसाए।। "

 इस पर क्रोधित होकर कपिल मुनि ने उन्हें श्राप देकर एक क्षण में उनके शरीरों को जलाकर भस्म कर दिया। श्राप वस मारे जाने के कारण वह वह 60000 जीव आत्माएं अंतरिक्ष में भटकने लगी।

जिन्हें वह साधारण साधु-संत समझ रहे थे। वह एक महान शक्तिशाली योगी थे। और अपनी मंत्र शक्ति के बल पर उन्होंने राजा के पुत्रों सहित समस्त सेना को भस्म कर दिया। हमें किसी की साधारण वेशभूषा देखकर उसे कमजोर नहीं समझना चाहिए ना ही बिना सोच विचार किए किसी पर आरोप लगाना चाहिए वरना ऐसे ही परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

 तब नारद ने उन्हें एक उपाय बताया कि यदि गंगा जी को स्वर्ग से धरती और धरती से पाताल लोक ले जाया जाए तो पवित्र गंगाजल के स्पर्श से उन भटकती आत्माओं को मुक्ति प्राप्त हो जाएगी। परंतु सागर और उनके बाद कई पीढ़ियों तक कोई भी गंगा जी को लाने में सफल ना हो सका। फिर दिलीप के पुत्र महाराज भगीरथ ने यह निश्चय किया कि वह धरती पर गंगा को लाकर अपने पित्तरों का उद्धार करेंगे। उन्होंने गंगा जी को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए और उन्होंने गंगा को धरती पर लाने का वरदान भगीरथ को दिया। परंतु आकाश से धरती पर गिरते समय यदि मध्य में उनके वेग को ना रोका जाता तो उनकी धारा के वेग से धरती के फट जाने का भय था। इसलिए फिर भगीरथ ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया और महादेव ने वचन दे दिया कि वह गंगा जी की धारा को अपने शीश में जटाओं में धारण करके धरती को बचा लेंगे। फिर ब्रह्मा जी के आदेश से श्री विष्णु के चरणो से निकलकर गंगा जी आकाश मार्ग से धरती पर बड़े वेग से आई। फिर भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में समेट लिया फिर गंगा जी भारत के पुण्य भूमि पर कल कल करके बहने लगी। और बहते- बहते समुद्र में समा गई। वहां से समुद्र के रास्ते जब उनकी धारा पाताल लोक पहुंची तो असुरों ने उनका बड़ा भव्य स्वागत किया।  इस प्रकार पाताल लोक में उनके पवित्र जल के स्पर्श से भागीरथ के 60,000 पितरों का उद्धार हुआ। यह है गंगा जी की पवित्र कथा। 

जब तक सूरज चांद रहेगा गंगा जी इस धरती के प्राणियों का कल्याण करेंगी। संभव है आने वाले समय में देवी-देवताओं के प्रति लोगों की आस्था कम हो जाए पर गंगा का गौरव कभी कम नहीं होगा।


अंत भला तो सब भला। परंतु हमें इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि अपने से ईर्ष्या करने वालों को पहचानो और उनसे सावधान रहो। ऐसा करने वाला किसी भी हद तक जाकर आपका नुकसान कर सकता है। चाहे आपने उसका कुछ भी ना बिगाड़ा हो। और बिना अच्छी तरह जांचे परखे किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिए ना ही किसी साधारण दिखाई देने वाले व्यक्ति को छोटा या असहाय समझना चाहिए, वरना हमें भयंकर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सुंदरवन.....Sundarvan

गया ( बिहार ).....पूर्वजों की मुक्ति...Gaya Dham ...Purvajon ki mukti

जिम कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान.....Jim Corbett National Park