श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान
श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान
हमारे परिवार के वो व्यक्ति जो अब इस दुनिया में नहीं हैं हमारे पूर्वज कहलाते हैं। अपने पूर्वजों को श्रद्धा और प्रेम के साथ याद करना और उनके नाम पर किये जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान को श्राद्ध और पिंडदान कहते हैं।
सनातन धर्म में पुनर्जन्म वाद का सिद्धांत है। माना जाता है कि आत्मा अमर है अर्थात हमारे परिवार के जो लोग इस शरीर को छोड़कर चले गए हैं उनकी आत्मा किसी भी लोक में हो, पितृ पक्ष में इस धरती पर वापस आती है और वह श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त होती है।
वैदिक धर्म के अनुसार श्राद्ध और तर्पण से पितरों को तृप्ति मिलती है और पिंडदान से उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है। भारत में कई स्थान पर पिंडदान किया जाता है परंतु बिहार के गया धाम में बहने वाली फल्गु नदी के तट पर किए गए पिंडदान को सबसे अधिक महत्व प्राप्त है।
पिंड दान क्या होता है ?
किसी भी वस्तु के गोलाकार रूप को पिंड कहते हैं।
अब तो विज्ञान भी मानता है कि यह पूरा ब्रह्मांड एक ऊर्जा का स्वरूप है और गोला का रूप में चक्कर काट रहा है। इस प्रकार हमारा शरीर भी ऊर्जा का एक पिंड है।
पिंडदान के समय पूर्वजों के लिए अर्पित किए जाने वाले पदार्थ, जौ या चावल के आटे को गूंधकर बनाया गया गोल आकृति पिंड कहलाता है।
पिंडदान की विधि
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके, जल का आचमन करके, अपने जनेऊ को दाएं कंधे पर रखकर, चावल, गाय के दूध, घी, शक्कर एवं शहद को मिलाकर बने पिंडों को श्रद्धा भाव से अपने पितरों को अर्पित करना पिंडदान कहलाता है।
जल तर्पण विधि
जल में काले तिल जौ, कुशा और सफेद फूल मिलाकर उसे जल से तर्पण किया जाता है मान्यता है इस से पितरों को तृप्ति मिलती है इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है। शास्त्रों के मुताबिक पितरों का स्थान बहुत ऊंचा है पितरों की श्रेणी में माता पिता दादा दादी नाना नानी सहित सभी पूर्वज शामिल हैं। वह व्यापक रूप से गुरु और आचार्य पितरों की श्रेणी में आते हैं।
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